साहस निडरता की परिभाषा सिखाती है ये कहानी जो की धिमी गति से चलने वाला कछुआ और एक खरगोश का है जो सरपट दौड़ लगा देता है उन दो जीव के बारे में है।
एक बार एक जंगल में एक घमंडी खरगोश एक कछुआ से कहता है है की चलो हम दोनो के बिच एक दौड़ का स्पर्धा रखते है यह सुनने के बाद वह कछुआ जो धिमी गती से चलता है वह उस दौड़ स्पर्धा के लिए राजी हो जाता है। इस दौड़ के बारे में जानने के तत्पश्चात सभी जंगल के जीव जो वहां वास करते थे। सभी इस दौड़ स्पर्धा का लुत्फ उठाने आते है। अब दोनो के बिच दौड़ स्पर्धा का शुरुआत होती है तो खरगोश जो सरपट दौड़ लगा देता है वो अपना दौड़ जल्द से जल्द बहुत दूरी तय कर लेता है और फिर सभी उस धिमी गती से चलने वाले कछुआ का दौड़ देखते है तो वो अभी कुछ ही दूर गया था की उसका प्रतियोगी खरगोश बहुत दूर का फासला तय कर लेता है। तब खरगोश वहां अपने आस-पास को देखता है तो वहा दूर-दूर तक कछुआ दिखाई नही देता है तब उसे ख्याल आता है की कछुआ तो नही दिख रहा है तो मै कुछ समय के लिए आराम कर लेता हूं। खरगोश की थोड़ी देर में आंख लग जाती है। तभी वहा उस वक्त कछुआ पहुंच जाता है और खरगोश को सोता देख चुपके से वहा से निकल जाता है और फिर वह अपनी धिमी गती से चलते जाता है और फिर खरगोश के नींद से उठने के बाद वह देखता है की कछुआ तो बहुत दूर चला गया है तब वह खरगोश अपनी सरपट दौड़ लगाता है एंड लाइन के पास जाकर उसे पता चलता है की वह कछुआ तो उस कतार को पार कर लिया है। दौड़ तो कब का खत्म हो गया है।
इसीलिए कहते है की घमंड में इतने भी अंधे न हो की आपको आपके सामने का ही न दिखे। जैसे की उस खरगोश के साथ हुआ वो घमंड में ही रह गया और फिर मंद गति से चलने वाला कछुआ ही दौड़ जीत गया। इसलिए कहते है –
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